बच्चों को संस्कार देने का उत्तम समय उनके गर्भ में रहने के दौरान है: साध्वी शुभंकरा श्रीजी

आज का संकल्प : खड़े होकर या कुर्सी टेबल पर नहीं, जमीन पर आसन लगाकर करेगें भोजन

अजीत यादव
रायपुर बस्तर के माटी । एमजी रोड स्थित जैन दादाबाड़ी प्रांगण में चल रहे मनोहरमय चातुर्मासिक प्रवचन श्रृंखला में शनिवार को नवकार जपेश्वरी साध्वी शुभंकरा श्रीजी ने कहा कि आज मां-बाप का पहला कर्तव्य संतान को संस्कार देना है। आज पिता पैसे कमाने में व्यस्त है और मां घर में नहीं रह सकती। वह भी सामाजिक और धार्मिक आयोजनों में शामिल होने घर से बाहर जाती है। बच्चे को मां बाप का समय ही नहीं मिलता। बच्चों को संस्कार सिखाने सबसे बढ़िया समय तब है जब वह गर्भ में होता है। इस समय सिखाया हुआ संस्कार कभी नहीं सिखाया जा सकता। आज गर्भ में बच्चे को पाल रही माताओं को टीवी-मोबाइल से दूर रहना चाहिए। आज कितने मां-बाप अपने बच्चों के साथ रोज आधा घंटा बिताते हैं। घंटों साथ बैठते जरूर है मगर टीवी के सामने। टीवी और मोबाइल में हिंसात्मक दृश्यों को देखकर हमारा हृदय कठोर हो चुके हैं। आज सुबह उठते ही लोगों को एक हाथ में पेपर और दूसरे हाथ में चाय का कप चाहिए। चाय का लुफ्त उठाते हुए लोग पेपर में हिंसात्मक खबरों को पढ़ते हैं और रोज इन्हीं तरह की खबरों को देख देख कर हमारे अंदर की संवेदना भी चली गई है।

साध्वी जी कहती है कि ग्रंथकार हमें या शिक्षा देते हैं कि चोर, बदमाश और गलत धंधे करने वालों की संगति नहीं करनी चाहिए। आप चोर की संगति करोगे तो चोरों के कहलाओगे बदमाशों की संगति करोगे तो बदमाश कहलाओगे। आज हर व्यक्ति चोरी कर रहा है। वह किसी के जेब से पर्स नहीं निकाल रहा और ना ही किसी के घर में घुसकर डाका डाल रहा है। अपने व्यापार में ही टैक्स की चोरी और गलत धंधे कर रहा है। कभी गलत धंधे में वह फस गया तो पुलिस पकड़ कर ले जाएगी और जीवन भर जेल में भी रहना पड़ सकता है। ग्रंथ कार कहते हैं कि दुष्ट मित्रों की संगति से दूर रहो नहीं तो आप के जीवन में आनंद नहीं रहेगा। जीवन को कल्याणकारी बनाना है तो आपको सभी गलत काम छोड़ने होंगे।

*मन स्वस्थ तो तन स्वस्थ*

साध्वीजी कहती है कि आज आपको हर दिन कुछ नया खाना है। जीभ में कुछ नया स्वाद लगना चाहिए और रविवार को तो दाल, रोटी, चावल खाना ही नहीं है, उस दिन स्पेशल डिश ही चाहिए। पहले के दिनों में तो रविवार को महिलाएं अपने हफ्ते भर का बचा हुआ काम करती थी और जो भी खाने को मिल जाए वह खाकर रह लेती थी। आज यह डिशेज भी तो अन्न से तैयार किया जाता है। आज बच्चों को पसंद का खाना नहीं मिलता तो वे थाली छोड़ कर उठ जाते हैं तो ऐसे में अपमान किसका हुआ। यह मां अन्नपूर्णा देवी का अपमान है।

उन्होंने आगे कहा कि आज लोग शादी पार्टी में जाते हैं तो एक ही बार में थाली भरकर खाना ले आते हैं ताकि बार-बार उठने की जरूरत ना पड़े। ऐसा करके वह यह नहीं सोचते कि हम जितना खा सकते हैं उतना ही थाली में लें, नहीं तो यह सब व्यर्थ चला जाएगा। जो भी खाओ खुशी मन से खाओ, प्रसन्न मन से अगर खाना नहीं खाया और नुख्स निकाला तो यह अपमान की श्रेणी में आता है। सबको आज टेबल कुर्सी और डाइनिंग टेबल में बैठकर खाने की आदत हो गई है। शादी-पार्टी में तो आजकल लोग खड़े होकर ही खाना खा लेते हैं। पहले लोग आसान और चौरा में बैठकर खाना खाते थे और आज भी वह स्वस्थ हैं, उन्हें कोई नखरा नहीं रहता था। आज भी कई लोग जो मिला उसे खा लेते हैं। प्रवचन के बाद साध्वीजी ने श्रावक-श्राविकाओं को यह संकल्प दिलाया कि आज से कोई भी खड़े होकर खाना नहीं खाएगा, सब नीचे बैठकर ही खाना खाएंगे।

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