नक्सली हूँ मैं !


शहरों की चकाचौंध से कोसों दूर
जंगल पहाड़ों के बीच मेरा घर है
पानी ,जंगल और जमीन की लड़ाई में
खुद की जान के लिए दिन रात संघर्ष करता
तुमने खुद को मेरा हितैषी बताया
लेकिन अब तक कभी भला नहीं हुआ मेरा
मानवता का पाठ पढ़ाने वाले
पहले अपनी जमीर को इंसान बना
जब जब जुल्म के खिलाफ आवाज़ बुलंद करता हूं
नक्सली बना दिया जाता हूं मैं।

जंगल मेरा ज़मीन भी मेरी
लेकिन पूरी संपत्ति पे अधिकार तुम्हारा
ये कैसा न्याय है, कहाँ का न्याय है?
मैं तो कहता हूँ सरासर अन्याय है
तुम सरकारी ताव दिखा सकते
मैं विरोध भी जता नहीं सकता
तुम मेरी ज़मीन छीन सकते
और मैं उसे बचाने की कोशिश भी नहीं कर सकता ?
जब जब तुम्हें रोकने के लिए खड़ा होता हूँ
नक्सली बना दिया जाता हूं मैं।

तुम तो सरकार हो
जो भी हो बहुत बेकार हो
तुम्हारे पास बंदूक है
संदूक में भर भर के गोली है
नियम कानून की झोली है
जब मन किया मार दिया
जब मन नहीं किया घर उजाड़ दिया
लाश पे माओवादी की एक पर्ची चिपका दिया
जब जब मैं अपने हक के लिए हथियार पकड़ता हूँ
नक्सली बना दिया जाता हूँ मैं।

अरे राजनीतिक ढोंगियों
सत्ता और पैसे के लालचियों
मानवता का घटिया ज्ञान मत बांटों
विकास के नाम पे झूठे वादे करनेवाले
मुआवजा के नाम लोगों का दोहन करने वाले
सरकारी घोषणाएं सब ढकोसला है
सिर्फ शब्दों के जाल वाला धोखा है
तुम मेरी ज़िंदगी पर बुलडोजर चला सकते
लेकिन मैं तुम्हें एक पत्थर भी नहीं मार सकता
जब जब खुद को बचाने के लिए हाथ उठाता हूँ
नक्सली बना दिया जाता हूँ मैं।

कभी सोचा है तुमने, शहर में क्यों नहीं ?
सिर्फ गाँव में होते हैं नक्सली
सरकारी दांव पेंच वाले हथियार से
शहर की ज़मीन लूट कर दिखा दो
न, तुममें इतनी हिम्मत नहीं
तुम्हें तो सिर्फ आदिवासियों का हक मारना है
बुजदिलो पहले खुद के अंदर के नक्सली को मारो
आदिवासियों के गद्दारों को मारो
फिर जा के मुझ जैसे नक्सली को मारकर
देश का सच्चा शूरवीर कहलाना।

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