राजनीतिक महारथियों से गुलजार रहने वाला कमल विलास पैलेस पड़ा है वीरान, क्या है राजनीतिक इतिहास, पढ़ें पूरी खबर



*अजीत यादव स्टेट ब्यूरो छत्तीसगढ़ मो.9755116815*

खैरागढ़बस्तर के माटी ।/ विधानसभा का चुनावी बिगुल फूंके जाने के बाद खैरागढ़ में राजनीतिक शोर के बीच कमल विलास पैलेस में सन्नाटा पसरा है। पारिवारिक विवाद के कारण प्रशासन ने पैलेस को सील कर दिया है। सन् 1947 के बाद ऐसा दूसरी बार हो रहा है जब खैरागढ़ का राजमहल ‘‘कमल विलास पैलेस’’ बेजार और वीरान पड़ा है। एक समय ऐसा भी था जब खैरागढ़ की राजनीति पैलेस से शुरू होकर वहीं खत्म होती थी। खैरागढ़ ही नहीं पूरे राजनांदगांव जिले के राजनीतिक महारथियों का पैलेस में जमावड़ा होता था।

विधानसभा चुनाव 2023 में इस बार महल की भूमिका निष्प्रभावी है। 2022 के उप चुनाव में देवव्रत सिंह का निधन हो चुका था। उसके बाद भी उनके नाम का शोर पूरे विधानसभा में गूंजता रहा। उप चुनाव जीतने कांग्रेस ने दर्जनों लुभावने वादे किए। बावजूद इसके कांग्रेस छोड़ने के बाद भी कांग्रेसियों की जुबां पर देवव्रत सिंह का नाम होता था। कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में पहली घोषणा जिला निर्माण तो दूसरा देवव्रत की मूर्ति स्थापना व उनके नाम का चौक बनाने के वादे को शामिल किया। जो अब तक पूरा नहीं हो पाया है।

देवव्रत सिंह का रूतबा और प्रभाव ऐसा था कि वे जनता कांग्रेस पार्टी से विधायक बने। उनकी मूर्ति स्थापना की घोषणा कांग्रेस ने की। जब इसमें देरी हुई तो भाजपा नेताओं ने नाराजग जाहिर कर देवव्रत सिंह की मूर्ति स्थापना जल्द शुरू करने की मांग की।

राजनांदगांव के वरिष्ठ पत्रकार अतुल श्रीवास्तव ने अपनी एक रिपोर्ट में उल्लेख किया है कि खैरागढ़ के राजपरिवार ने छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले की राजनीति में लंबे समय तक अपना दबदबा कायम रखा। खैैरागढ़ राजपरिवार ने खैरागढ़ में कला एवं संगीत विश्वविद्यालय की स्थापना की थी। उस दौर में इस विश्वविद्यालय का उद्घाटन देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की बेटी इंदिरा गांधी (बाद में देश की प्रधानमंत्री बनीं) ने किया था। विश्वविद्यालय और टेक्निकल स्कूल के उद्घाटन के लिए इंदिरा गांधी खैरागढ़ पहुंची थीं और दो दिन यहां रूकी थीं। इससे खैरागढ़ राज परिवार के राजनीतिक शक्ति का अंदाजा लगाया जा सकता है।

खैरागढ़ राजपरिवार से नजदीक से जुड़े और वरिष्ठ अधिवक्ता सुभाष सिंह के अनुसार उस समय मध्यप्रदेश राज्य का निर्माण नहीं हुआ था। अपना क्षेत्र सीपीएंड बरार के दायरे में आता था और नागपुर राजधानी होती थी। खैरागढ़ के राजा वीरेन्द्र बहादुर सिंह ने अपनी दिवंगत पुत्री इंदिरा सिंह की याद में संगीत विश्वविद्यालय बनाया था और इसका उद्घाटन वे प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से कराना चाहते थे लेकिन समयाभाव के चलते नेहरू ने अपनी पुत्री इंदिरा गांधी को इसके लिए भेजा।

अधिवक्ता श्री सिंह बताते हैं कि खैरागढ़ की रानी पद्मावती देवी सिंह प्रतापगढ़ राजपरिवार की बेटी थी और इलाहाबाद में पढ़ी-बढ़ी इंदिरा गांधी से उनकी मित्रता थी। इस मित्रता के चलते इंदिरा गांधी संगीत विश्वविद्यालय के उद्घाटन के लिए 14 अक्टूबर 1956 को खैरागढ़ पहुंची और दो दिन तक कमल विलास पैलेस में रूकीं। उस समय खैरागढ़ के राजा वीरेन्द्र बहादुर सिंह खैरागढ़ के विधायक थे और उन्होंने इंदिरा गांधी का स्वागत किया था।


राजा-रानी दोनों रहे सांसद
इस समय तक राजनांदगांव लोकसभा क्षेत्र का पृथक अस्तित्व नहीं था। यह इलाका दुर्ग लोकसभा क्षेत्र में आता था और यहां से डब्ल्यूएस किरोलीकर सांसद हुआ करते थे। सन 1962 में चौकी, डोंडीलोहारा, बालोद, राजनांदगांव, डोंगरगांव, लालबहादुर नगर, डोंगरगढ़ और खैरागढ़ को मिलाकर राजनांदगांव लोकसभा क्षेत्र बना और यहां से पहले सांसद राजा वीरेन्द्र बहादुर सिंह बने।

इसके बाद 1967 में बालोद, डोंडीलोहारा, खुज्जी, राजनांदगांव, डोंगरगढ़, डोंगरगांव, खैरागढ़ व वीरेन्द्रनगर को मिलाकर बने राजनांदगांव लोकसभा सीट से उनकी पत्नी और खैरागढ़ रियासत की रानी पद्मावती देवी सिंह सांसद बनीं।

मौजूदा समय में राजनांदगांव लोकसभा क्षेत्र का जो स्वरूप है वह 1971 में अस्तित्व में आया। अविभाजित राजनांदगांव जिले की आठ विधानसभा क्षेत्र चौकी (अब मोहला-मानपुर), खुज्जी, डोंगरगांव, राजनांदगांव, डोंगरगढ़, खैरागढ़, वीरेन्द्रनगर (अब पंडरिया) और कवर्धा में कांग्रेस दो धड़े में बंट गया ।

राजीव गांधी के बालसखा थे शिवेंद्र बहादुर

खैरागढ़ राजपरिवार की दूसरी पीढ़ी से राजा वीरेन्द्र बहादुर सिंह के पुत्र शिवेन्द्र बहादुर सिंह राजनांदगांव से तीन बार सांसद रहे। 1998 में कांग्रेस ने उनको टिकट नहीं दी। जनता दल की टिकट से उन्होंने चुनाव लड़ा पर इस चुनाव में कांग्रेस के मोतीलाल वोरा की जीत हुई। इनके बाद खैरागढ़ राजपरिवार के युवराज देवव्रत सिंह ने 3 बार सांसद चुनाव लड़ा जिसमें प्रदीप गांधी और मधुसूदन यादव से उनकी हार हुई वहीं लीलाराम भोजवानी को उन्होंने हराया।

कांग्रेस के इस गढ़ में राजपरिवार का रहा दबदबा

1952- राजा वीरेंद्र बहादुर सिंह
1957 – ऋतुपूर्ण किशोर दास
1962 -लाल ज्ञानेंद्र सिंह
1967- राजा वीरेंद्र बहादुर सिंह
1972- विजय लाल ओसवाल
1977- माणिक लाल गुप्ता
1980-1994 तक रानी रश्मिदेवी सिंह
1995 – उपचुनाव में देवव्रत सिंह
1998- देवव्रत सिंह
2003 – देवव्रत सिंह
2007- उपचुनाव में कोमल जंघेल
2008- कोमल जंघेल
2013 – गिरवर जंघेल
2018 – देवव्रत सिंह
2022- उप चुनाव में यशोदा नीलांबर वर्मा
2023- कांगेस से यशोदा वर्मा और भाजपा के विक्रांत सिंह आमने-सामने हैं।

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